केजरीवाल क्या आसान समझते हैं उत्तराखडं में पैर जमाना
ना संगठन, ना कोई बड़ा चेहरा, उत्तराखडं को समझना जरुरी
उत्तराखंड ने उक्रांद को किनारे कर दिया फिर AAP किसके भरोसे
देहरादून
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमों अरविंद केजरीवाल अब उत्तराखंड का रुख करना चाहते हैं. दिल्ली में दो बार मिली सफलता का स्वाद पंजाब में तो चख नहीं पाए हैं लेकिन उत्तराखंड को दिल्ली की तर्ज पर विकास का वादा और दावा कर रहे हैं. केजरीवाल को ये सपना आखिर कहां से आया कि दिल्ली और उत्तराखंड में एक तरीके से ही मुहल्ला क्लिनिक और शिक्षा व्यवस्था संचालित की जा सकती है ये समझना फिलहाल थोड़ा मुश्किल है. अलबत्ता इतना जरुर है कि जबसे दिल्ली सीएम और आप सुप्रीमों अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड में 2022 का विधानसभा चुनाव सभी 70 सीटों पर लड़ने की घोषणा की है तबसे कांग्रेस और बीजेपी में तो हलचल है ही लेकिन आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओँ ने भी सक्रिता बढ़ा दी है.
आम आदमी पार्टी का उत्तराखंंड में संगठन नहीं है
आम आदमी पार्टी का उत्तराखंड में संगठन नहीं है. जो प्रदेश में पदाधिकारी और कार्यकर्ता हैं भी वो वर्तमान में कोई खास राजनीतिक हैसियत नहीं रखते हैं., ऐसा भी नहीं है कि आप के साथ कोई बड़ी शक्सियत उत्तराखंड में जुड़ी हो. कांग्रेस और बीजेपी के पाले में ही अक्सर रहने वाले उत्तराखंडी मानस को तो आँदोलन और संघर्षों से जननी उत्तराखंड क्रांति दल भी नहीं समझ पाया तो फिर अरविंद केजरीवाल दिल्ली में बैठकर कैसे समझेंगे, ये एक बड़ा सवाल है. जिस उत्तराखंड के दर्द को ना समझ पाने के देहरादून में बैठे नेताओं और नीति नियंताओँ पर बीस वर्षों से आरोप लगते रहे हों वो भला दिल्ली में बैठे व्यक्ति का कैसे दामन पकड सकते हैं. इस पर संशय है. वो भी तब जबकि केजरीवाल दिल्ली के कूड़े के ढेर की मां नंदादेवी पर्वत से तुलना करते हों.
सिर्फ मोबाईल पर मेसेज सुनाने से नहीं बनता मानस
ये सही है कि उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी आपनी सक्रियता बढ़ाने की कोशिश कर रही है. आप का आईटी सेल भी देहरादून में बन रहा है, उत्तराखंड के प्रभारी और दिल्ली के विधायक दिनेश मोहनियां भी उत्तराखंड में एक तरह से डेरा ही डाले हुए हैं. दिल्ली सरकार के मंत्री मनीष सिसौदिया लोगों को जागरुकता संदेश दे रहे हैं. और उत्तराखंड में आप का संगठन मुद्दों को लेकर एक्टिव भी हो रहा है. लेकिन क्या सिर्फ इतने भर से आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में पैर जमा लेगी, ये एक बड़ा सवाल है. उत्तराखंड की परिस्थितियां दिल्ली के जैसी नहीं हैं., ना यहां वैसी सड़के हैं और ना ही शहरीकरण ही वैसा है. प्राकृतिक आपदा का खतरा तो मानों साथ ही चलता है. क्या अरविंद केजरीवाल इन हालातों को समझते भी हैं या सिर्फ दिल्ली की तर्ज पर विकास का जुमला ही बोला है.