जलालाबाद/बिजनौर (Big News Today) रिपोर्ट: एम. फ़हीम ‘तन्हा’
राज्य में निकाय चुनाव की घंटी बज चुकी है और नेताओं ने अपने कुर्ते-पाजामे चमकाकर जनता के दरवाजे पर जाना भी शुरू कर दिया है। जो जहां पर वर्तमान में निकायों के मुखिया की कुर्सी पर जमे हैं वे पिछले पांच साल में दूध जलेबी खाकर इस चिंता में हैं कि अगले पांच साल का जुगाड़ कैसे किया जाए। और जो पिछली बार नहीं जनता के सिरमौर नहीं बन पाए वे इस उधेड़बुन में हैं कि इस बार कैसे जीत का लड्डू खाने और खिलाने के मौका हाथ लगेगा। नगर पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों में चुनावों की रणभेरी से नेताओं की अब दिन रात यही कोशिशें शुरू हो चुकी हैं क्योंकि अब अगले कुछ दिनों में किसी भी समय राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग की तरफ से निकाय चुनावों में मुकाबलों की तुर्री बजाई जा सकती है।
निकाय चुनावों की इस रस्साकशी में आज बात करते हैं जिला बिजनौर के जलालाबाद नगर पंचायत के चेयरमैन पद के चुनाव की। यहां चुनाव से पहले ही माहौल बहुत दिलचस्प हो रहा है। चुनाव में कौन ‘जीत के लड्डू’ खायेगा और कौन हार के बाद ‘चाय-पापे’ खाकर काम चलाएगा ये तो आने वाला वक्त ही तय करेगा लेकिन माहौल बड़ा दिलचस्प हो गया है। जलालाबाद नगर पंचायत के चुनावों में इस माहौल का कारण बना है एक गठबंधन। ये गठबंधन वर्ष 2017 के निकाय चुनावों में बना था जिसको लेकर अब वर्तमान चेयरमैन के नाम से मशहूर लियाक़त अंसारी (इनकी पत्नी सायरा बानो चेयरमैन हैं) के लिए काफी लोगों का कहना है कि उन्हें पिछली बार के गठबंधन का ख्याल रखते हुए चुनाव नहीं लड़ना चाहिए और गठबन्धन के हिसाब से सीट पर चुनाव की दावेदारी खुद करने की बजाए उन लोगों को चुनाव लड़ाना चाहिए जिन्होंने पिछली बार उनको चुनाव लड़वाया था।
क्या है गठबंध ये जानिए?
आईए अब आपको बताते हैं कि जलालाबाद में चेयरमैन के चुनाव 2017 के चुनाव में क्या गठबंधन हुआ था। दरअसल जलालाबाद में नगर पंचायत चेयरमैन के पद पर जात-बिरादरी के राजनीतिक समीकरणों और पावर हासिल करने का चुनाव बना रहता है। इसमें राईन बिरादरी, अंसारी बिरादरी, कुरैशी बिरादरी और शेख बिरादरी मुख्यतौर पर शामिल रहती है। इन चार बिरादरियों के अलावा अन्य धर्म और जाति-बिरादरी की आबादी भी है और इन सभी में भी काफी तादाद में ऐसे वोटर भी हैं जो अपनी धर्म-जाति एवं बिरादरी नहीं देखते बल्कि नेता या प्रत्याशी कैसा है इसको ध्यान में रखकर वोट करते हैं। जलालाबाद में पहली बार वर्ष 2017 में अंसारी बिरादरी से लियाक़त अंसारी की पत्नी श्रीमती सायरा बानो चेयरमैन (अध्यक्षा) बनीं थीं। इससे पहले 2007 से 2017 तक लगातार दो बार राईन बिरादरी से याकूब राईन चेयरमैन रहे हैं और उससे पहले राईन बिरादरी से ही खलील राईन चेयरमैन रहे हैं। यानी कई वर्षों से चेयरमैन राईन बिरादरी से ही बनते रहे हैं । जलालाबाद नगर पंचायत क्षेत्र में जबसे राहुखेड़ी क्षेत्र जुड़ा है तबसे चेयरमैन बनाने में राहुखेड़ी के अंसारी बिरादरी के वोटरों की बड़ी भूमिका होने लगी है। लंबे समय से नगर की सत्ता पर काबिज रहने के कारण राईन बिरादरी से दूसरी बिरादरियों की राजनीतिक कसावट भी होने लगी है। इसलिए वर्ष 2017 के नगर पंचायत के चुनावों में चुनाव लड़ने के दावेदारों ने कई फ्रंट पर लड़ने की बजाए सिर्फ 2 फ्रंट बनने की रणनीति पर काम किया था। जिसमें कुरैशी बिरादरी से मेहबूब कुरैशी, शेख बिरादरी से खुर्शीद शेख और अंसारी से बिरादरी ही लियाक़त अंसारी का गठबन्धन हुआ था। यानी एक तरफ गठबन्धन ने लियाक़त अंसारी को सपोर्ट किया और दूसरी तरफ राईन बिरादरी से याकूब राईन और खलील राईन चुनाव मैदान में रह गए थे। लोगों का कहना है कि ये गठबन्धन इस शर्त और घोषणा के साथ हुआ था कि 2022 के चुनाव में लियाक़त अंसारी (या उनकी पत्नी) चुनाव नहीं लड़ेंगे बल्कि मेहबूब कुरैशी को समर्थन देकर चुनाव लड़ाया जाएगा।
लेकिन कहते हैं कि ‘सत्ता की मलाई और नासिर हलवाई का पेड़ा’ जो एक बार खा लेता है वो दुबारा खाने की चाहत जरूर पाल लेता है। अब नगर में आम चर्चा हो रही है कि चुनाव का समय आया है तो वर्तमान चेयरमैन पति लियाक़त अंसारी अपना गठबन्धन का वादा भूलने की कोशिश कर रहे हैं और दुबारा चुनाव लड़ना चाहते हैं, इससे गठबन्धन के अन्य साथी नाराज हो रहे हैं। लियाक़त अंसारी के समर्थक ऐसे किसी गठबन्धन के अस्तित्व में होने से ही दबी ज़बान से इनकार कर रहे हैं। इतना ही नहीं ऐसे गठबन्धन को विरोधी खेमे के याकूब राईन के समर्थक भी तवज्जो नहीं दे रहे हैं क्योंकि यदि गठबन्धन अस्तित्व में रहा तो अंसारी बिरादरी का काफी वोट मेहबूब कुरैशी को मिल सकता है। आपको हम दुबारा बता दें कि जलालाबाद में ऐसा बिल्कुल नहीं है कि अंसारी बिरादरी के चेयरमैन को सिर्फ अंसारी बिरादरी का वोट ही मिलता है और राईन बिरादरी के चेयरमैन को सिर्फ राईन बिरादरी ही वोट करती है, बल्कि सभी को दूसरी बिरादरियों का वोट भी काफी मिलता है। क्योंकि राजनीतिक नाराजगी और एन्टी-इनकंबेंसी सब जगह पनपती है और इसी राजनीतिक नाराजगी या काम-काज के आधार पर पसन्दगी- नापसंदगी के कारण वोटर जाति-बिरादरी की सीमाओं को छोड़कर दूसरी बिरादरी के प्रत्याशी को वोट करता है।
पिछली बार के चुनाव में भी हर बार की तरह याकूब राईन और खलील राईन के चुनाव लड़ने के कारण राईन बिरादरी के वोट 2 जगह बंट गए क्योंकि याकूब राईन और खलील राईन के परिवार में राजनीतिक अदावत चली आ रही है। इस बार खलील राईन के स्थान पर उनके छोटे भाई अख्तर राईन चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। अब चुनाव की तैयारियों में एक तरफ जहां मौजूदा चेयरमैन पति लियाक़त अंसारी अपने चुनाव लड़ने की सूरत में मिलने वाले वोटर्स के समर्थन का आंकलन करते घूम रहे हैं तो वहीं मेहबूब कुरैशी और खुर्शीद शेख गठबन्धन का हवाला देकर जनता के बीच जा रहे हैं। दूसरी तरफ याकूब राईन भी घर-घर जाकर अपने वोट पक्के करने में लगे हुए हैं, उनका बड़ा फोकस राहुखेड़ी क्षेत्र से अंसारी बिरादरी के ज्यादा से ज्यादा वोट अपने पक्ष में करने में लगा हुआ है, क्योंकि अपनी ही बिरादरी के वोट मुख्य तौर पर दो जगह बंटने के कारण उनको जीत के लिए दूसरी जाति-बिरादरियों के वोट की जरूरत होगी। यदि गठबन्धन से अलग हटकर लियाक़त अंसारी चुनाव मैदान में डंटते हैं तो उनके लिए भी जनता को कन्विन्स कर पाना उतना आसान नहीं दिखाई देता है। यानी कुल मिलाकर इस बार का चुनाव का माहौल गठबन्धन की चर्चाओं में चल रहा है । देखना होगा कि ये गठबन्धन का ऊंट चुनाव आते-आते किस करवट बैठता है।