Writen By: Anu Shakti Singh “आज जब तमाम बातें रवीश कुमार से जुड़ी हुई ही हो रही हैं और मैं उनके यू ट्यूब का सब्सक्रिप्शन नंबर देखकर शांत चित्त हूँ कि उनकी आवाज़ बदस्तूर ज़ारी रह सकती है, मेरा ध्यान उन सभी लोगों पर गया जिनके बात और काम करने का ढर्रा बेख़ौफ़ है।
उन लोगों में एक उर्फ़ी जावेद भी हैं। उर्फ़ी सोशल मीडिया से सेलिब्रिटी बनी हैं। अपने मन के कपड़े पहनती हैं। अपने मन की बातें करती हैं। यही उनकी पहचान है।
ऐसे देश में जहां अक्सर ही ड्रेस कोड लागू हो जाते हैं। कपड़े केवल बदन ढकने का ज़रिया नहीं बल्कि सबसे अहम चरित्र प्रमाण पत्र हैं, जहां बलात्कार का दोष भी कपड़े पर आता है, उर्फ़ी का तमाम जजमेंट्स और लोगों की प्रतिक्रियाओं को ठेंगे पर रखना उनकी पहचान को ख़ास बना देता है।
अनु शक्ति सिंह की वॉल से ( From Anu Shakti Singh post ) https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid02USufNPXF4yPKT4qyNbUuQznFPk91vzHdiSufH4mzxguH1U8PWyx8QbTnyyZnBhPcl&id=100002710045743&mibextid=Nif5oz
एक कथित लेखक उठता है और उर्फ़ी को डिस्ट्रकशन क़रार देता है। यह कहते हुए वह लेखक भूल जाता है कि अपनी तमाम किताबों में उसने स्त्रियों को वस्तु से इतर कुछ नहीं रखा है।
कितना आसान है न अपनी ज़िंदगी जीती, अपनी बात खुलकर करती-कहती औरत को समस्या की जड़ बता देना। यही तो होता रहा है। औरतों का मन-मर्ज़ी करना इस समाज को सबसे अधिक खलता आया है। वे जो भी करें स्वयंभू मठ अधिपतियों से पूछ कर करें। वे मना करें तो बस रुक जाएँ… नहीं रुकती है उर्फ़ी। नहीं मानती है समाज के इन ठेकेदारों की बात!
वह हर वह चीज़ करती है जो वह चाहती है। यह बतौर नागरिक उसका विशेषाधिकार है कि किसी और के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश किए बिना वह अपनी ज़िंदगी खुलकर जिए। अपने अधिकारों को जीना किसी और को परेशान करना नहीं होता है। जीती रहो उर्फ़ी… अपने नियमों और शर्तों पर ज़िंदाबाद रहो। (जिन्हें लगता है वे अश्लील हैं, उन्हें अपने नज़रिए का इलाज पहले करवाना चाहिए।-My two cents for Urfi Javed):” Anu