देहरादून (Faizan Khan)
वह दिन दूर नहीं जब देहरादून की लीची का सिर्फ नाम ही रह जायेगा, क्योंकि दून घाटी में लगातार लीची के पेड़ सहित तमाम तरह के पेड़ कट रहे हैं और बिल्डिंगे बन रहीं हैं। पेड़ों के कटने से वातावरण गरम हो रहा है और जो लीची के पेड़ अभी काटने से बचे भी हैं उनमें वातावरण गरम होने से लीची का उत्पादन कम हो रहा है क्वालिटी भी प्रभावित हो रही है। मौसम की गर्मी के कारण इस वर्ष करीब पचास फीसदी उत्पादन में गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा है।
लीची व्यवसायी कहते हैं कि इस साल जब लीची का फूल निकलने का समय हुआ तो पहाड़ी इलाक़ों में बर्फ़ पढ़ने के कारण फूल सही से निकला नहीं और जब फूल सही से निकला तो बदलते मौसम और बढ़ती गर्मी और बारिश न होने के कारण इस साल लीची की पैदावार में भारी गिरावट देखने को मिल रही है । सबसे ज़्यादा बिदाना, गुलाब ख़ास ,कलकत्तिया इन तीनों क़िस्म की लीचियाँ सबसे ज़्यादा मार्केट में बिकती है।
उद्यान विभाग के वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक दीपक पुरोहित कहते हैं कि लीची के अच्छे उत्पादन के लिए तामपान 30 से 36 डिग्री के मध्य और आद्रता यानी नमी वाला चाहिए होता है लेकिन अब तापमान काफी बढ़ा हुआ रहने लगा है, उससे लीची उत्पादन प्रभावित होने की संभावना रहती है। लीची का फल मई महीने के अंतिम सप्ताह में बाजार में आजाता है और जुलाई के दूसरे सप्ताह तक समाप्त हो जाता है। यानी लीची के उत्पादन के लिए मार्च, अप्रैल, मई और जून में तापमान और वातावरण में नमी जरूरतभर की रहने से ही लीची का उत्पादन अच्छा होता है लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाता है।
दून में लीची के व्यवसायी बताते हैं कि देहरादून में लीची का स्वरूप बीते कुछ सालों में काफी अधिक बदला है इस साल भी बहुत काम लीची हुयी है बदलते मौसम के कारण और गर्मी ज़्यादा होने के कारण लीची का फूल अच्छी तरह नही हो पाया है और लीची उत्पादन में भी काफी कमी देखी गई है। वे बताते हैं कि पिछले सालो में पहले एक लीची के पेड़ पर तकरीबन 1 क्विंटल लीची का उत्पादन होता था और अब यह घटकर 50 किलो तक ही रह गया है।
देहरादून में लीची के व्यवसायी बताते है कि लीची की क्वालिटी और उसके टेस्ट में भी भारी अंतर आया है। पहले के मुकाबले देहरादून में अब लीचियां छोटी हो गई हैं। लीची व्यवसायी का कहना है कि देहरादून के विकास नगर बसंत विहार, रायपुर, राजपुर, डालनवाला कौलागढ़ क्षेत्रों में लीची के सबसे ज्यादा बाग थे मगर अब यहां पर भी लीची का उत्पादन साल दर साल कम हो रहा है।