देहरादून ( Big News Today)
कांग्रेस राजस्थान से लेकर दिल्ली और देहरादून तक हार के कारणों का पर चिन्तन-मंथन कर रही है, नव संकल्प के द्वारा संगठन मजबूत करने का प्लान तैयार कर रही है। लेकिन इस चिन्तन-मंथन और नव संकल्प पर चम्पावत उपचुनाव लड़ीं कोंग्रेस की प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी ने ही आईना दिखा दिया है, निर्मला गहतोड़ी का बयान कांग्रेस के नव संकल्प को मूहँ चिढ़ा रहा है कि आखिर किस संगठन को मजबूत करने की तैयारी हो रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार निर्मला गहतोड़ी का कहना है कि “मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने चम्पावत का उपचुनाव उन्होंने अकेले लड़ा है कांग्रेस पार्टी ने नहीं, उनके पास केवल 137वर्ष पुरानी कॉंग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह था और कुछ नहीं। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की जनसभा कराने के लिए भी उन्हें खुद व्यवस्था करनी पड़ी।” गहतोड़ी का ये बयान इस तस्वीर को स्पष्ट कर रहा है कि चम्पावत उपचुनाव कांग्रेस ने किस तरह से लड़ा है। ये बात पहले से ही तय मानी जा रही है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपना खटीमा सीट से सामान्य चुनाव भले ही हार गए हों लेकिन चम्पावत सीट से उपचुनाव वो भारी वोटों से जीतने जा रहे हैं क्योंकि एक कारण तो ये माना जा रहा है कि उपचुनाव में कभी मुख्यमंत्री हारे नहीं हैं , और पुष्कर धामी की लोकप्रियता भी बड़ी है ,दूसरा कारण कांग्रेस को कुछ महीने पहले ही हुए विधानसभा के आम चुनाव में जनता ने बहुमत दिया नहीं है। इस बात का अंदाज़ा कोंग्रेस को भी है कि पुष्कर धामी को चम्पावत में हराना मुश्किल है। जनता भी समझ रही है कि कांग्रेस के लिए चम्पावत की सीट हासिल करना बहुत बड़ी कठिन डगर है।
बावजूद इसके बीजेपी ने पूरी शिद्दत और गंभीरता से चुनाव लड़ा है, पूरी पार्टी संगठन और सरकार के मंत्री भी प्रचार अभियान में लगे रहे, अर्थात इस तरह से बीजेपी ने चुनाव लड़ा है जैसे आम चुनाव हो और हर एक वोट की कीमत है। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी का बयान कांग्रेस के अंदरूनी कहानी बयान कर रहा है। और सवाल उठ रहा है कि चम्पावत चुनाव या किसी अन्य चुनाव में हार-जीत होना अलग बात है लेकिन यदि कांग्रेस बूथ से लेकर जिला और प्रदेश स्तर तक संगठन को मजबूत करने के नवसंकल्प पर आगे बढ़ने की बात कर रही है तो फिर चम्पावत के चुनावी रण में बीजेपी और सीएम धामी के राजनीतिक लाव-लश्कर के सामने निर्मला गहतोड़ी को कांग्रेस ने अकेले क्यों छोड़ दिया, क्या चम्पावत का चुनाव लड़ना कांग्रेस की जिम्मेदारी नहीं थी?