नई दिल्ली, 6 जुलाई 2025
Report: Afzal Siddiqui

BIG NEWS TODAY : राजधानी दिल्ली में रविवार को 10 मोहर्रम के मौके पर पारंपरिक ताजियों का जुलूस भारी संख्या में श्रद्धालुओं की मौजूदगी में निकाला गया। जुलूस की शुरुआत दोपहर लगभग 3:30 बजे पुरानी दिल्ली स्थित जामा मस्जिद से हुई और यह अपने निर्धारित मार्ग—चावड़ी बाजार, हौज काजी, हॉर्स काजी, अजमेरी गेट और पहाड़गंज से होता हुआ देर शाम कर्बला, जोरबाग में सम्पन्न हुआ।
इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकाला गया जुलूस
यह जुलूस इस्लामिक महीने मुहर्रम की 10वीं तारीख को निकाला जाता है, जिसे ‘यौम-ए-आशूरा’ कहा जाता है। यह दिन इस्लाम के तीसरे खलीफा और पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में मनाया जाता है, जो 680 ईस्वी में कर्बला (वर्तमान इराक) के युद्ध में अन्याय और अत्याचार के खिलाफ डटे रहे।
दिल्ली में यह जुलूस वर्षों पुरानी परंपरा का हिस्सा है और इसमें बड़ी संख्या में शिया मुस्लिम समुदाय के लोग भाग लेते हैं।

गमगीन माहौल, मातमी धुनें और तबर्रुक का वितरण
जुलूस के दौरान श्रद्धालु “या हुसैन”, “हुसैन ज़िंदाबाद” जैसे मातमी नारों के साथ आगे बढ़ते रहे। पारंपरिक ढोल-ताशों की गूंज और मातमी धुनों के साथ श्रद्धालु काले कपड़े पहनकर और सीने पर मातम करते हुए जुलूस में शामिल हुए। जगह-जगह स्थानीय लोगों और समाजसेवी संस्थाओं द्वारा शरबत, सादा पानी, और तबर्रुक (प्रसाद) वितरित किया गया।
प्रशासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम
जुलूस के शांतिपूर्ण और व्यवस्थित आयोजन को सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली पुलिस, ट्रैफिक पुलिस, और सिविल डिफेंस की टीमों को तैनात किया गया था। कई स्थानों पर पुलिस बैरिकेडिंग, ड्रोन से निगरानी, और मेडिकल सहायता की भी व्यवस्था की गई थी।
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने जुलूस के मार्ग से सटे क्षेत्रों में ट्रैफिक डायवर्जन लागू किया ताकि यातायात सुचारु बना रहे।
सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की मिसाल
इस अवसर पर न सिर्फ मुस्लिम समुदाय, बल्कि विभिन्न धर्मों के लोगों ने भी सामाजिक एकता और सौहार्द का संदेश दिया। कई जगहों पर और फल वितरित किए।
दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन और स्थानीय नेताओं ने भी अलग अलग स्थानों से जुलूस में भाग लेकर शहीद-ए-कर्बला को श्रद्धांजलि अर्पित की।

मुहर्रम: शोक और आत्मचिंतन का पर्व
मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है और यह मुस्लिम समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। विशेषकर शिया मुस्लिम इस महीने को शोक के रूप में मनाते हैं। ताजिया, जो इमाम हुसैन की याद में प्रतीकात्मक मकबरे के रूप में बनाए जाते हैं, को जुलूस में शामिल कर कर्बला की घटना को याद किया जाता है।