भारत में जन्म और मृत्यु प्रमाण-पत्रों की संस्कृति: नागरिकता का दस्तावेज, एक सामाजिक बदलाव व प्रशासनिक जरूरत

Dehradun Delhi Mussoorie Uttarakhand


जानिये क्या है जन्म प्रमाण-पत्र एवं मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाने के क्या हैं नियम और क्या है प्रक्रिया।

✍️ लेखक: मौ. फहीम ‘तन्हा’ / Report: Mohd Faheem ‘Tanha’

BIG NEWS TODAY : भारत जैसे विविध सामाजिक संरचना वाले देश में दस्तावेजों की अहमियत का स्थान आज जितना बड़ा है, वह बीते कुछ दशकों में ही बना है। आज जो जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र एक सामान्य नागरिक का कानूनी अस्तित्व और अधिकारों का आधार बन गए हैं, वे कभी केवल औपचारिक कागज़ समझे जाते थे — और अधिकांश लोग इन्हें बनवाने की ज़रूरत तक महसूस नहीं करते थे।

समाज और व्यवस्था की पुरानी सोच:

तीस-चालीस वर्ष पहले, भारत के अधिकांश हिस्सों — चाहे वे ग्रामीण हों या शहरी — में बच्चों का जन्म प्रमाणपत्र बनवाना आम चलन नहीं था। बच्चे के जन्म के समय:

  • घर पर नामकरण हो जाता,
  • स्कूल में दाखिले के समय शिक्षक के अनुसार जन्मतिथि दर्ज हो जाती,
  • पहचान के लिए राशन कार्ड, स्कूल सर्टिफिकेट या जाति प्रमाणपत्र पर्याप्त समझे जाते थे।

इसी तरह मृत्यु के समय:

  • दस्तावेज़ों में “स्वर्गीय” या “दिवंगत” लिख देना,
  • परिवार द्वारा मौखिक सूचना देना,
  • या अंतिम संस्कार के बाद कोई औपचारिकता न निभाना — यही परंपरा थी।

यह सब उस सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा था जहाँ भरोसा, परिचय और सामाजिक मान्यता दस्तावेजों से ऊपर मानी जाती थी।

अब क्यों जरूरी हो गए हैं प्रमाणपत्र?

वर्तमान में यह स्थिति बदल गई है। डिजिटल इंडिया, नागरिकता पहचान, सरकारी योजनाएं, बैंकिंग, शिक्षा, नौकरी, पासपोर्ट, और यहां तक कि नागरिकता से संबंधित मामलों में भी जन्म प्रमाणपत्र एक अनिवार्य दस्तावेज बन गया है।

कुछ प्रमुख उदाहरण:

  • स्कूल या कॉलेज एडमिशन
  • पासपोर्ट बनवाना
  • आधार कार्ड व मतदाता पहचान पत्र में जन्मतिथि का प्रमाण
  • पेंशन व कर्मचारी भविष्य निधि
  • उत्तराधिकार व संपत्ति विवाद
  • नागरिकता प्रमाण की स्थिति (जैसे बिहार में वर्तमान आवश्यकता)

भारत में जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने का कानूनी आधार:

“जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969” के तहत भारत में सभी जन्म व मृत्यु का पंजीकरण अनिवार्य है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी नगर निगम, नगर परिषद, ग्राम पंचायत या नगरपालिका को दी गई है।

🧾 मृत्यु प्रमाणपत्र कैसे बनवाएं?

सामान्य प्रक्रिया:

  1. मृत्यु स्थल के अनुसार संबंधित नगर निकाय या ग्राम पंचायत में आवेदन करें।
  2. यदि मृत्यु अस्पताल में हुई है — अस्पताल द्वारा प्रमाणित मृत्यु विवरण साथ लें।
  3. यदि मृत्यु घर पर हुई — ग्राम प्रधान/पार्षद या डॉक्टर से प्रमाणित दस्तावेज़ लगाएं।
  4. एक फॉर्म भरकर जमा करें।
  5. आमतौर पर 7–15 दिन में प्रमाणपत्र जारी हो जाता है।
  6. देरी होने पर ‘विलंब प्रमाण पत्र’ की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।

🧾 अगर 30–40 वर्ष की आयु में जन्म प्रमाणपत्र नहीं है, तो क्या करें?

हां, बनवा सकते हैं — लेकिन यह “Delayed Birth Registration” कहलाता है।

✅ प्रक्रिया:

🔹 1. जन्म स्थान के नगर निगम/पंचायत कार्यालय में संपर्क करें

  • वही निकाय जिसमें व्यक्ति का जन्म हुआ था।

🔹 2. “डिलेयड बर्थ रजिस्ट्रेशन” फॉर्म भरें

(जन्म के एक वर्ष से अधिक समय बाद के लिए विशेष फॉर्म होता है)

🔹 3. प्रमाण के रूप में निम्न दस्तावेज़ों में से कुछ संलग्न करें:

आवश्यक दस्तावेज़उद्देश्य
स्कूल सर्टिफिकेट (10वीं/12वीं)जन्म तिथि और स्थान
अस्पताल रिकॉर्ड (यदि उपलब्ध)जन्म का विवरण
माता-पिता के दस्तावेज़ (पुराने वोटर कार्ड, राशन कार्ड आदि)परिवार का संबंध सिद्ध करना
सरकारी सेवा रिकॉर्ड (यदि उपलब्ध)जन्म और आयु की पुष्टि
आधार कार्ड/पैन कार्डपहचान प्रमाण
ग्राम प्रधान या पार्षद की शपथ-पत्र/प्रमाणसमर्थन के लिए (वैध नहीं, पर सहायक)

🔹 4. शपथ पत्र (Affidavit) देना होगा:

  • जिसमें जन्म की तिथि, स्थान, माता-पिता का नाम, और देर से पंजीकरण का कारण लिखा हो।

🔹 5. SDM/First Class Magistrate से अनुमोदन लेना होगा:

  • एक वर्ष से अधिक देर से पंजीकरण के लिए मजिस्ट्रेट का अनुमोदन जरूरी है।

🔹 6. फीस का भुगतान करें:

  • ₹50–₹200 तक (राज्य व नगर निकाय के अनुसार अलग हो सकती है)

🔹 7. प्रमाणपत्र प्राप्त करें:

  • सभी दस्तावेज़ सही होने पर 15–30 दिन के भीतर प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाता है।

❗ क्या ग्राम प्रधान या पार्षद का पत्र पर्याप्त है?

❌ नहीं।
ग्राम प्रधान या पार्षद का प्रमाण पत्र केवल सहायक दस्तावेज़ माना जाता है,
यह नागरिकता या जन्म का कानूनी प्रमाण नहीं होता।


✅ निष्कर्ष:

भारत की पीढ़ियों ने जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र के बिना ही जीवन बिताया — यह सामाजिक व्यवस्था और सरकारी तंत्र की उस समय की सीमा को दर्शाता है।
लेकिन अब परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं। दस्तावेज़ों की मांग पहचान, अधिकार, नागरिकता और सुरक्षा से जुड़ चुकी है।

जिन लोगों ने अपने जीवन में कभी जन्म प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं महसूस की, वे आज कानूनी प्रक्रियाओं के सामने मजबूर हैं —
परंतु कानून उन्हें रास्ता देता है।
जरूरत है तो केवल जानकारी, धैर्य और सही प्रक्रिया अपनाने की।

✍️ लेखक की तरफ से:

(नोटः इस लेख को लोगों की जानकारी के लिए तैयार किया गया अथवा लिखा गया है, इसमें दिए गए तथ्य और नियम कानूनों की जानकारियां यथासंभव विभिन्न प्रमाणिक स्रोतों संदर्भों से ली गई हैं, जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है। यद्पि रिपोर्ट तैयार करने में तथ्यों को लेकर पूरी सावधानी बरती गई है, किंतु यदि कोई त्रुटि या गलत जानकारी भ्रमवश शामिल हो गई हो तो अग्रिम रूप से हमें खेद है और प्रकाश में आते ही उसका भूल सुधार कर दिया जाएगा। )

संदर्भ:

  1. The Registration of Births and Deaths Act, 1969
  2. Election Commission of India – Voter Verification Guidelines
  3. UIDAI – Aadhaar FAQs
  4. State Municipal Corporation Websites (e.g., Delhi, Bihar, Maharashtra)
  5. Supreme Court and High Court rulings on Citizenship & Documentation

📚 संदर्भ लिंक्स (Reference Links):

  1. The Registration of Births and Deaths Act, 1969
    🔗 https://legislative.gov.in/sites/default/files/A1969-18.pdf
  2. Citizenship Act, 1955 (with amendments) – MHA
    🔗 https://www.mha.gov.in/sites/default/files/CitizenshipAct1955.pdf
  3. Election Commission of India – Official Portal
    🔗 https://eci.gov.in/
  4. UIDAI – List of Valid Documents for Aadhaar
    🔗 https://uidai.gov.in/images/commdoc/valid_documents_list.pdf
  5. CEO Bihar – Chief Electoral Officer Website
    🔗 https://ceobihar.nic.in/
  6. Patna Municipal Corporation (For Birth/Death Registration)
    🔗 https://pmc.bihar.gov.in/
  7. Delhi MCD Birth/Death Certificate Services
    🔗 https://mcdonline.nic.in/
  8. UNICEF/UN CRVS (Civil Registration and Vital Statistics)
    🔗 https://crvs.un.org/
  9. Supreme Court Judgement – Lal Babu Hussein vs Union of India (via Indiankanoon)
    🔗 https://indiankanoon.org/doc/1668663/