पंचायत चुनावः सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया आईना, सीता देवी मनवाल के पक्ष में आया फैसला

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REPORT: Mo. Faheem ‘Tanha’

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की प्रक्रिया में लगातार सामने आए विवादों के बाद राज्य निर्वाचन आयोग चर्चाओं में हैं। हाईकोर्ट ने भी राज्य निर्वाचन आयोग को एक्ट के अनुसार ही चुनाव कराने के लिए निर्देशित किया तो वहीं अब सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग के चुनावी प्रक्रिया में लगे अधिकारियों को आईना दिखा है। निर्वाचन अधिकारियों की मनमानी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

गौरतलब है कि टिहरी जनपद के जिला पंचायत के वार्ड भुत्सी जौनपुर की सीता देवी मनवाल का नामांकन खारिज कर दिया गया था। उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, हाईकोर्ट का फैसला सीता देवी के पक्ष में आया था। जिसके बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। और सुप्रीम कोर्ट ने भी मंगलवार को नामांकन खारिज करने सम्बन्धी रिटर्निंग अफसर के फैसले को गलत बता कर सीता देवी को राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के पिछले सप्ताह के आदेश को बरकरार रखा है। जिसमें सीता देवी का नामांकन वैध ठहराया गया था।

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बताया मील का पत्थर

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि , राज्य निर्वाचन आयोग और उसके निर्वाचन अधिकारियों के आदेशों के माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल और सर्वोच्च न्यायालय में औंधे मुंह गिरने से पंचायत चुनावों में निर्वाचन अधिकारियों के बेतुके निर्णयों से आहत लोगों में न्याय की उम्मीद जगी है।

उन्होंने कहा कि टिहरी जिले की सकलाना सीट की भूत्शी पंचायत सीट से सीता मनवाल के नामांकन को माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सही माना है । इससे पहले उच्च न्यायालय नैनीताल के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने निर्वाचन अधिकारी द्वारा सीता देवी के नामांकन को अस्वीकृत करने के निर्णय को गलत करार दिया था।

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि , चुनावी याचिकाओं के इतिहास में उच्च और उच्चतम न्यायालय द्वारा सीता देवी मामले में दिया निर्णय मील का पत्थर साबित होते हुए भविष्य में दायर होने वाली चुनाव संबंधी याचिकाओं में देश के न्यायालयों का मार्ग निर्देशन करेगा।

यशपाल आर्य ने कहा कि , अधिकांशतः एक बार चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद 1952 के पुन्नू स्वामी निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। लेकिन सरकार की शह और चुनाव के दौरान असीमित ताकतों से लैस रिटर्निंग अधिकारी , आयोग के ही बनाए दिशा निर्देशों की अवहेलना करके किसी प्रत्याशी को लाभ पहुंचाने के लिए गलत निर्णय लेते हैं। उन्होंने कहा कि , उत्तराखण्ड के हाल के पंचायत चुनाव में ऐसे दर्जनों उदाहरण सामने आए हैं।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि , सीता देवी मामले में उच्च न्यायालय नैनीताल और उच्चतम न्यायालय के साल 2000 के निर्वाचन आयोग बनाम अशोक कुमार मामले के निर्णय को ध्यान में रखते हुए बेहद महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।

यशपाल आर्य ने साफ किया कि , अशोक कुमार निर्णय के अनुसार यदि निर्वाचन आयोग की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण, मनमानी और अवैध हो तो निर्वाचन याचिका दायर होने से पहले आयोग के निर्णयों पर रिट याचिका के माध्यम से न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि अशोक कुमार मामले के निर्णय के बाद भी बहुत कम न्यायालय चुनावी याचिकाओं में हस्तक्षेप करते हैं । चुनाव याचिकाओं में निर्णय बहुत देर में आते हैं इसलिए चुनावों में हेराफेरी करने के आदी उम्मीदवारों और आयोग के अधिकारी बेलगाम हो गए हैं। उन्होंने कहा कि , पुन्नू स्वामी निर्णय का लाभ लेने वालों के विरुद्ध न्यायालयों में चुनौती दी जानी चाहिए।