नयी दिल्ली/देहरादून, बिग न्यूज़ टूडे: सांसद राज्यसभा एवं भाजपा राष्ट्रीय सह-कोषाध्यक्ष डा.नरेश बंसल ने सदन मे हिमालयी क्षेत्र उत्तराखंड में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास हेतु उच्च अध्ययन केंद्र स्थापित किए जाने की मांग उठाई। डा. नरेश बंसल ने स्पेशल मेनशन मे सदन के माध्यम से केंद्र सरकार के समक्ष यह राज्य हित की महत्वपूर्ण मांग उठाई। डा.नरेश बंसल ने अपने स्पेशल मेनशन मे कहा कि उत्तराखंड के उत्तराकाशी जिले के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में मालवा आ जाने से सुरंग में 41 मजदूर फंस गए थे, जिन्हें प्रधानसेवक नरेंद्र भाई मोदी के मार्गदर्शन व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कुशल नेतृत्व मे सभी ऐजेंसी के सामुहिक 17 दिनों तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद बाहर निकला जा सका। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई एवं मुख्यमंत्री धामी के सफल कार्यान्वयन से भारतीय सेना, NDRF और SDRF, GSI, CBRI रुड़की, वाडिया इन्सटयूट जैसी विभिन्न एजेंसियों ने मिलकर संयुक्त बचाव अभियान चलाया वह सफल रहा। साथ ही बाबा बौखनाथ की कृपा से यह अभियान सफल हुआ।


डा. नरेश बंसल ने प्रधानमंत्री के नेतृत्व को इसके लिए साधुवाद दिया जिनके मार्गदर्शन में सभी टीमें इस चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन को पूरा करने में सफल रहीं। सांसद डा.नरेश बंसल ने कहा कि ऑस्ट्रेलियाई विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स इसे उनके जीवन का ‘सबसे कठिन’ बचाव कार्य अभियान बताते हैं। डा. नरेश बंसल ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह घटना सुरंग निर्माण के विषय में चिंताएँ बढ़ाती है, साथ ही संभावित कारणों और निवारक उपायों की बारीकी से जाँच करने के लिये प्रेरित करती है। सिलक्यारा सुरंग में मालवा आने का सटीक कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है।

डा. नरेश बंसल ने सदन मे स्पेशल मेनशन मे कहा कि हिमालय के पहाड़ काफ़ी नए हैं और यहां की बदलती संरचना के कारण पैदा होने वाली अस्थिरता चिंता का विषय है। भूविज्ञानियों का कहना है कि उत्तरी हिमालय क्षेत्र में जहाँ उत्तराखंड बसा है, वहां की चट्टानें अवसादी हैं। सुरंग बनाने हेतु चट्टानों की नाज़ुकता और मज़बूती आदि की गहन पड़ताल करना ज़रूरी है।
भाजपा राष्ट्रीय सह-कोषाध्यक्ष व सासंद राज्य सभा डा.नरेश बंसल ने सभापति सदन के माध्यम से मोदी सरकार से निवेदन किया कि हिमालयी क्षेत्र उत्तराखंड में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास हेतु उच्च अध्ययन केंद्र स्थापित किया जाय, ताकि उत्तराखंड इस तरह की आपदाओं और मौसम की मार को झेल सके व उसका पहले आकलन व उसका उपचार कार्य हो सके ।