देहरादून के ‘गुच्चू पानी-रोबर्स केव’ वाले ‘सुल्ताना डाकू का किला’ आज़ादी के अमृत महोत्सव में तिरंगी रोशनी में जगमगा रहा है। जानिए कहां हैं सुल्ताना डाकू का किला और क्या है देहरादून से सम्बंध!

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photo: किला, गुच्चू पानी-रोबर्स केव एवं डाकू सुल्ताना (साभार)

देहरादून/नजीबाबाद (रिपोर्ट: एम. फ़हीम ‘तन्हा’)

जो लोग देहरादून में कभी गर्मियों की छुट्टियों में घूमने आए होंगे उन्होंने देहरादून के पर्यटक स्थल ‘गुच्चू पानी-रोबर्स केव’ का नाम जरूर सुना होगा। तमाम ऐसे भी होंगे जो इस पर्यटन स्थल पर जाकर गुफा और बहते पानी का आनंद लेकर आये होंगे। अपने आप में कई रहस्य और रोमांच समेटे हुए है ‘गुच्चू पानी-रोबर्स केव’ पर्यटन स्थल जोकि सुल्ताना डाकू की पनाहगाह के रूप में जाना जाता है, इसीलिए इसका नाम रोबर्स केव है यानी ‘डाकुओं की गुफा’।

फ़ोटो: डाकू सुल्ताना का (पत्थरगढ़ का किला, नजीबाबाद)

अब हम आपको बताते हैं कि अंग्रेज़ी शासनकाल में अपने आतंक और दहशत का बादशाह कहलाने वाले सुल्ताना डाकू का किला कहां आजकल रंगबिरंगी रोशनी से जगमगा रहा है। ये किला उत्तरप्रदेश के जिला बिजनौर के मशहूर शहर नजीबाबाद में स्थित है। उत्तराखंड के हरिद्वार जिले की सीमा बिजनौर जिले से मिलती है। नजीबाबाद में सुल्ताना डाकू का किला आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान पुरातत्व विभाग ने तिरंगी रोशनी से सजाया हुआ है। इस किले की देखरेख का जिम्मा अब पुरातत्व विभाग संभालता है।

फ़ोटो(तैय्यब अली): पत्थरगढ़ का किला(सुलताना डाकू), नजीबाबाद

लेखक तैय्यब अली लिखते हैं कि “रोहिल्ला नवाब नजीबुद्दौला ने किले का निर्माण सन 1755 में कराया था। सुल्ताना डाकू के किले के नाम से पहचाने जाने वाला यह पत्थरगढ़ का किला लगभग 40 एकड़ मे बना हुआ है। इस किले कि मजबूती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसकी दीवारों की चौड़ाई दस फुट से भी अधिक है, इन दीवारों के बीच अनेको कुएं बने हुए हैं इन कुओं की खासियत यह थी कि दीवारों के सहारे ऐसे पानी खींचा जा सकता था कि जिस से बाहरी लोगो को पता न चल सके यह किला लखौरी इंटों व पत्थरों से बना है किले के दो द्वार हैं इन पर ऊपर और नीचे दो-दो सीढियां बनी हुई हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन दिवारो या छतो में कहीं पर भी लौहे के गाटर या स्तम्भ नहीं हैं ।”

फ़ोटो(तैय्यब अली): किले का अंदरूनी हिस्सा

तैय्यब अली आगे लिखते हैं कि “बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध में नजीबाबाद-कोटद्वार क्षेत्र में सुल्ताना डाकू का खौफ था. कोटद्वार से लेकर बिजनौर यूपी और कुमाऊं तक उसका राज चलता था. बताया जाता है कि सुल्ताना डाकू लूटने से पहले अपने आने की सूचना दे देता था, उसके बाद लूट करता था। जिम कॉर्बेट ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘माय इंडिया’ के अध्याय ‘सुल्ताना: इंडियाज़ रॉबिन हुड’ में एक जगह लिखा है, ‘एक डाकू के तौर पर अपने पूरे करियर में सुल्ताना ने किसी ग़रीब आदमी से एक कौड़ी भी नहीं लूटी. सभी गरीबों के लिए उसके दिल में एक विशेष जगह थी. जब-जब उससे चंदा मांगा गया, उसने कभी इनकार नहीं किया और छोटे दुकानदारों से उसने जब भी कुछ खरीदा उसने उस सामान का हमेशा दोगुना दाम चुकाया।”

फ़ोटो(तैय्यब अली): किले की दीवार से दृश्य

अपने लेख में वे आगे लिखते हैं कि “नजीबाबाद में जिस किले पर सुल्ताना ने कब्जा किया था आज भी उसके खंडर है. उस किले के बीच में एक तालाब था. बताया जाता है कि सुल्ताना ने अपना खजाना यहीं छुपाया था. बाद में वहां खुदाई भी हुई पर कुछ नहीं मिला. आखिरकार 14 दिसंबर 1923 को सुल्ताना को नजीबाबाद ज़िले के जंगलों से गिरफ्तार कर हल्द्वानी की जेल में बंद कर दिया गया . नैनीताल की अदालत में सुल्ताना पर मुक़दमा चलाया गया और इस मुकदमे को ‘नैनीताल गन केस’ कहा गया. उसे फांसी की सजा सुनाई गई. हल्द्वानी की जेल में 8 जून 1924 को सुल्ताना को फांसी पर लटकाया दिया गया ।”

कोलाज: कलेक्टर एवं साल्वेशन आर्मी का अनुबंध पत्र (साभार:अशोक मधुप, बिजनौर)

जाने माने वरिष्ठ पत्रकार अशोक मधुप लिखते हैं कि “तत्कालीन बिजनौर कलेक्टर द्वारा सोलवेशन आर्मी को अनुबंध पर दिया गया था पत्थरगढ़ का किला। बाद में यहाँ भातुओं का सुधार गृह बनाया गया। इन्ही भातुओं में से एक सुल्ताना अपराध के रास्ते पर चल दिया और सुल्ताना डाकू के नाम से विख्यात हो गया।” अशोक मधुप ने तत्कालीन अनुबंध की प्रति भी अपने सोशल मीडिया अकॉउंट पर शेयर की हैं।

फ़ोटो: गुच्चू पानी-रोबर्स केव के विभिन्न दृश्य कोलाज

देहरादून के वरिष्ठ समाजसेवी सुरेंद्र अग्रवाल पुराने किस्सों और मान्यता को याद करते हुए कहते हैं कि “गुच्चू पानी क्षेत्र में बनी गुफा में सुल्ताना डाकू और उसके साथी अंग्रेज़ सैनिकों से बचकर छुपकर पनाह लेते थे, इसीलिए इस जगह का नाम रोबर्स केव यानी डाकुओं की गुफा पड़ गया। गुच्चू पानी क्षेत्र में बनी ये गुफा पहाड़ के बीच में है, इसमें से अंदर कई झरने बहते रहते हैं जिनका पानी बाहर नदी के रूप में आता है, ये बहुत खूबसूरत जगह है जोकि अंदर पानी और झरने वाली छोटी गुफा होने के कारण डाकुओं को अपने छुपने के लिए सही स्थान लगता रहा होगा। शहर की आबादी से थोड़ा हटकर देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र का ये स्थान देहरादून गर्मियों की छुट्टियों में आने वाले पर्यटकों का पसंदीदा स्थान है। समाज सेवी सुरेंद्र अग्रवाल आगे कहते हैं कि सन 1910-11 में कोटद्वार भाभर क्षेत्र में उनके नाना जी श्री उमराव सिंह रावत के घर पर पहले सुल्ताना डाकू ने चिट्ठी डाली थी और फिर लूटने आया था जिसमें मुकाबला करते हुए उनके नाना जी उमराव सिंह रावत की मौत हो गई थी।”

फ़ोटो साभार दिनेश कंडवाल: डाकू सुल्ताना की गिरफ्तारी (BNT दावा नहीं करता)

लेखक एवं भूविज्ञानी दिनेश कंडवाल सुल्ताना डाकू की गिरफ्तारी के समय का एक फोटो शेयर करते हुए लिखते हैं कि “सेठों को लूटने और गरीबों की मदद करने के कारण लोगों ने उसे सुलतान नाम से पुकारा। वही धीरे-धीरे सुलताना हो गया। तराई में सुलताना के अपराध और गरीबों के मदद के किस्से आज भी मशहूर हैं।”

फ़ोटो साभार तैय्यब अली: पत्थरगढ़ (सुल्ताना डाकू ) का किला

अब ये सुल्ताना डाकू का किला या कहें कि पत्थरगढ़ का किला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में रहता है हालांकि ये खंडहर बनता जा रहा है मेंटिनेंस या पर्यटन स्थल बनाने को लेकर कम ध्यान दिया जाता है। आज़ादी के अमृत महोत्सव में ये किला भी रंगबिरंगी रोशनी में शाम होते ही चमक उठता है।

फ़ोटो: किले का जगमगाता हुआ अंदरूनी हिस्सा

वरिष्ठ पत्रकार एजाज़ अहमद ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि “देश की आज़ादी का पहला ध्वजारोहड़ जिले में किले पर हुआ था। बाद के वर्षों में किले की हालत खराब होती गई लेकिन अब ये आज़ादी के अमृत महोत्सव में जगमगा रहा है।”

पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय प्रभारी रोहित कुमार और केयरटेकर जितेंद्र कुमार की देखरेख में किले को रंगीन लाइटों से सजाया गया है, जिसको देखने के लिए काफी लोग पहुंच रहे हैं। नजीबाबाद से कोटद्वार मार्ग पर पड़ने वाले इस किले को ट्रेन से जाते हुए भी दूर से ही देखा जा सकता है। हालांकि कोटद्वार मुख्यमार्ग से किले तक पहुंचने के लिए करीब एक-डेढ़ किलोमीटर का सम्पर्क मार्ग बरसात के चलते खराब है जिसको लेकर नजीबाबाद के उपजिलाधिकारी विजय वर्धन तोमर का कहना है कि संपर्क मार्ग को और ठीक कराया जा रहा है ताकि किले को देखने जाने वालों को कोई दिक्कत का सामना ना करना पड़े।