उत्तराखंड के विकास के लिए तड़पते नेता और त्रिवेंद्र सरकार के सामने अपनों की चुनौती

Uttarakhand


अफसरशाही के बहाने विधायकों की नाराजगी की क्या है हकीकत

क्या ये सिर्फ अफसरों से नाराज़ी है जो दिल्ली तक पहुंची है

विकास के बहाने उत्तराखंड ने कई बार देखी है उथल-पुथल

त्रिवेंद्र रावत विधायको की नाराजगी दूर करने में होगें सफल!

देहरादून-उत्तराखंड

इन दिनों उत्तराखंड बीजेपी की राजनीति में विधायकों की नाराजगी के कारण हलचल हो रही है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत या फिर से सरकार से नाराजगी को खुलकर तो नहीं बोला जा रहा है लेकिन जो विधायक नाराजगी जाहिर कर रहे हैं वो अधिकारियों के रवैये और कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठा रहे हैं. खुलकर नाराजगी जाहिर करने वाले विधायकों में सबसे पहले नाम डीडीहाट सीट से विधायक बिशन सिंह चुफाल का लिया जा रहा है. चुफाल के साथ ही लोहाघाट के विधायक पूरन सिंह फर्त्याल और अब रायपुर सीट से विधायक उमेश शर्मा काउ का नाम भी शामिल हो गया है. इन तीनों ही विधायकों ने बाकायदा सरकार को चिठ्टी भेजकर विकास योजनाओं में अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं और ये भी कि अफसर विधायकों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं. विधायकों की नाराजगी का मामला देहरादून से दिल्ली तक पहुंच चुका है.

बिशन सिंह चुफाल से ने तो यहां तक दावा किया है कि करीब 30 विधायक ऐसे हैं जो उनके क्षेत्रों में विकास कार्यों की गति धीमी होने और अफसरों के खराब रवैये की आपस में मिलकर शिकायत करते हैं. बिशन सिहं चुफाल ने अपने क्षेत्र में विधायक निधि और जिला योजनाओँ के प्रति अफसरों की लापरवाई और अफसरों द्वारा एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि के तौर पर तवज्जों ना देने का आरोप लगाया. इसको लेकर वे बुधवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी जाकर मिले हैं. लोहाघाट से विधायक पूरन फर्त्याल ने जौलजीबी-टनकपुर हाईवे में ढेकेदार द्वारा फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर ठेका लेने के मामले में शासन के उच्च अफसरों से लेकर सरकार तक से शिकायत का दावा किया है लेकिनकिसी भी अफसर के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई है. इतना ही नहीं रायपुर से बीजेपी के विधायक उमेश शर्मा का काउ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर कहा है कि उनके क्षेत्र में 2 वर्षों से कोई विकास कार्य नहीं हुआ है. ऐसे में वे जनता के सामने चुनाव में कैसे जाएंगे.

विधायकों के इस नराजगी भरे रवैये को कहीं बगावत और कहीं सरकार से असहमति के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन बिशन सिंह चुफाल और उमेश कुमार सीधे तौर पर मीडिया से यही कह रहे हैं कि ना तो सरकार से कोई नराजगी है और ना ही बगावत या असहमति है बल्कि अफसरों और नौकरशाही के रवैये से नाराजगी जिसको बयान किया जा रहा है.

लेकिन इस सबके बीच एक सवाल उठ रहा है कि यदि सरकार से नाराजगी नहीं तो फिर मामला दिल्ली तक क्यों जा रहा है. चुफाल के साथ दिल्ली में कई विधायक पहुंचे थे हालाकि नड्डा से मुलाकात सिर्फ चुफाल ने की है. भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टोलरेंस और सुशासन का नारा देकर एक कड़क सरकार चला रहे सीएम त्रिवेंद्र सिह रावत की सरकार के सामने क्या पिछली हरीश रावत सरकार, उसरे पहले विजय बहुगुणा सरकार, उससे पहले रमेश पोखरियाल निशंक सरकार और फिर उससे भी पहले जनरल बीसी खंडूरी सरकार की तरह की चुनौतियों के संकेत के तौर पर इन हालात को देखा जाना चाहिए. हालांकि एनडी तिवारी सरकार को छोड़ दिया जाए तो उससे पहले नित्यानंद स्वामी सरकार में भी ऐसे ही हालात पैदा हुए थे. त्रिवेंद्र सिंह रावत के नजदीक से जानने वाले मानते हैं कि त्रिवेंद्र रावत की राजनीतिक समझबूझ और दक्षता इन हालातों को शांत करने में सफलता हासिल करलेंगे. क्योंकि उत्तराखंड की राजनीति का चरित्र ऐसा ही रहा है जिसको त्रिवेंद्र रावत बखूबी समझते हैं.